प्राचार्य की कलम से
प्रिय विद्यार्थियों
आज के इस भीड़भाड़ के शीघ्रगामी युग का सहज , सरल एवं अनुशासनप्रिय होना अति आवश्यक है | केवल अच्छे अंको के साथ कक्षा उत्तीर्ण करना ही ध्येय की प्राप्ति नहीं है यह तो जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति नहीं है यह तो जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति का एक पक्षविशेष है | मनुष्य में सदाचार, विनम्रता , परोपकारिता , कृतज्ञता , विषय को समझने की जिज्ञासा, सकारात्मक सोच आज्ञाकारिता ऐसे गन है जो विद्यार्थी के सोने के रूप को उसे भटठी में तपकर कांचन बना देते हैं तथा स्वामी विवेकानंद एवं स्वामी दयानन्द इत्यादि ऋषियों की अग्रपंक्ति में उसे ला खड़ा करते है | इस मोबाइल के युग में मोबाइल के साथ ज्यादा चिपकना गलत है परन्तु अपेक्षित जानकारी प्राप्त करने हेतु उसके सकारात्मक पहलु तक उसका प्रयोग अवर्जनीय है | आज के इस तकनिकी युग में समय की रफ़्तार के साथ साथ चलने के लिए मोबाइल का प्रयोग एवं उसके ज्ञान की जानकारी होना अति आवश्यक है | आज के विद्यार्थी में असहजता इतनी व्याप्त हो गयी है कि वह दो पल से ज्यादा एक स्थान पर नहीं बाथ सकता , उसे चैन शांति नहीं है , लघु अनैतिक उपायों से शीघ्र से शीघ्रतर अपने लक्ष्य को पाने के लिए बेचैन रहता है |
मानव जीवन के आदि वैदिक युग में भी सन्न द्रष्टा ऋषियों में सहजता, विवेकीपन , सकारात्मक सोच , अध्यात्मवादिता थी जिसके परिणामस्वरुप मानव जीवन के इतिहास के विभिन्न युगों में उसने समुचित सकारात्मक चिंतन के आधार पर विकास प्राप्त किया तभी भौतिकवाद गैलेलियो , दार्शनिक अरस्तु कंफ्यूसिस प्रफुल चन्द्र राय रसायनशास्त्री, वैयाकरण पाणिनि इत्यादि विचारक अन्वेषक हुए जिनके परिणामस्वरूप आज उनके दर्शाये मार्ग पर चलते हुए विकास के परिवर्तित, परिवर्धित एवं परिष्कृत युग को चुने जा रहे है | मेरा अंतिम यही प्यारभरा सन्देश है कि आप विद्या के इस पवन मंदिर में आये है उसमें अपनी ईमानदारी , लगन , सच्ची निष्ठा एवं कर्त्तव्य बोधता को स्वीकार कर अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त कर आदर्श नागरिक बने तथा देश के विकास में अपना योगदान दे |
डा हरिप्रकाश शर्मा